Friday 28 December 2018

लग जा गले, के फ़िर...

आज, हम फिरसे 1 बार मिले
लगा, मानो सब ठीक हो गया है
तुम एक नई शुरुआत के लिए तैयार हो गयी हो
हमने,
थोड़े से वक़्त में दुनिया भर की बातें कर लीं
तुम तो अपना काम छोड़कर,
शहर के दुसरे कोने मुझे छोड़ने आईं
खुश था मैं,  कि पुरानी सारी बातें भुलाकर
अब सब ठीक हो जाएगा

स्कूटर पर पीछे बैठे बैठे सोचा, उसे पकड़ कर बैठ जाऊं
अगर उसने पूछा क्या हुआ,
तो कह दूँगा की डर लग रहा था कि गिर न जाऊं
जैसे ही आगे बढ़ा उसे पकड़ने के लिए
कम्बख्त दोनों के हेलमेट ही भिड़ गए
और स्कूटर लहर गई
मैं, हेलमेट का शीशा ऊपर कर,
sorry sorry बोलता रह गया
एक बार फ़िर कोशिश करना तो ज़रूरी था
(और शायद मेरा हक़ भी )
लेकिन इस बार, "I wanted to play it safe"
अभी, कंधे पर हाथ रखकर देखते हैं
हाँ, ये आसान भी है और ठीक भी रहेगा
धीरे से मैंने अपना दांयाँ हाथ उठाया
और उसके दाहिने कंधे पर रखने ही वाला था
कि, बगल से सर्र से गाड़ी निकली
और स्कूटर फ़िर लहर गई
ऐसा लग रहा था, मानो
भगवान सारी पुरानी गलतियों का बदला आज ही ले रहे थे

इतना खूबसूरत और प्रेम प्रसंग्युक्त मौसम
लेकिन हमारी प्रेम कथा तो दूर
दोस्ती कथा भी ढंग से शुरू नही हो पा रही थी
लेकिन हम भी "mechanical engineer" हैं
हार मानने वालों में से नहीं
कोई और तरकीब सोचने लगे

तब तक स्कूटर की रफ़्तार कम हो गई
नज़रें उठाकर और होश में वापस आकर देखा
दिन में तारे दिखने लगे और आसमान टूट पड़ा
बगल में मेरे घर का दरवाज़ा था
मैं अपनी मंज़िल तक पहुँच गया था
लेकिन अपनी मंज़िल से दूर जाने वाला था

अब वक़्त आ चूका था
1 आखरी बार गले तो मिला ही था
मैं स्कूटर से उतरा, हेलमेट उतारा
मन में सब कुछ कम से कम १० बारी सोचा हुआ था
गलती की कोई गुंजाइश नही थी
'हम गले मिलते हैं, मैं उसका हाथ पकड़ता हूँ
थोड़ी तारीफ़ करके, घर छोड़ने के लिए शुक्रिया करता हूँ
अगली बार मिलने की जगह तय करता हूँ
वो मुस्कुरा कर कहती है इतनी जल्दी जाने की क्या ज़रूरत है....'

ग्यारहवीं बार, धड़कते दिल के साथ मैं आगे बढ़ा, वो पलटी
लगा जैसे वक़्त थम सा गया
सब धीरे धीरे चल रहा था
उसकी ज़ुल्फें मेरे चहरे पर थीं और वो बार बार मेरा नाम ले रही थी
क्या कभी सारे सपने 1  साथ सच हुए हैं?
इतनी ख़ुशी हुई की संभाली न गई

फ़िर, भन्न आवाज़ आई और कान के नीचे खीच कर 1 थप्पड़ पड़ा
(दे कन्टाप - कानपूर से हैं हम ना)
आज तक दिन में इतने तारे नहीं दिखे थे
वो मेरे कंधे झिंझोड़कर बोली
"उठ जाओ अब तो, मम्मी के ६ फ़ोन आ चुके हैं, घर जाना है मुझे"

तो जनाब और मोहतरमा, हुआ यूँ
मैं तो बढ़ा था गले मिलने
वो पलटी और उसका हेलमेट
मेरे सिर पर दन्न से लगा
मेरी तशरीफ़ धड़ाम से सड़क पर
और मैं उसके चरणों में गिरा
उसकी डाँट से तो देवी माँ याद आ गईं
लहराती हसीन ज़ुल्फों ने साक्षात चंडी का रूप ले लिया था

होश संभालते हुए,
ज़मीन को अपने पैरों के नीचे वापस खिसकाते हुए
मैं खड़ा हुआ और बोला, "I am really sorry, drive safe"
गले मिलना तो दूर, "bye" बोलने का मौका भी नहीं मिला
और वो "ok" कहकर स्कूटर भगा निकली
जो "chocolate" उसके लिए थी, घर आकर खुद खा ली
कम से कम हेलमेट की चोट के दर्द से ध्यान तो हटा

मैंने सोचा, गलतियाँ तो सबसे होती हैं
फिर भी, जितना भी मुनासिब हुआ मिलते रहेंगे
पश्मीना धागों से यादों की चादर बुनते रहेंगे
लेकिन इस याद के बाद और यादें बनाने की हिम्मत नही हुई
जब हिम्मत करके मिलने के लिए पूछा
तो जवाब में कभी मंज़ूरी नही मिली

काश ये कथाकार के किरदार
1 उलझे ऊन के गोले की तरह होते
कभी अलग ही नही हो पाते
लेकिन ये तो रेल की पटरियों की तरह निकले
पता है कभी साथ नही छोड़ेंगे लेकिन
1 दुसरे के साथ हो भी नही सकते |