नीले गगन के तले
खुद से बातें करना चाहता हूँ
कभी कभी ख़्वाबों में
खो जाना चाहता हूँ
पुरानी बातों को,
संजोकर रखना चाहता हूँ
उन पलों की चादर ओढ़कर
बच्चे की तरह,
सिसकियाँ लेकर सोना चाहता हूँ
उनकी गोद में सिर रखकर
मन की सारी बातें
बे-झिझक बोलना चाहता हूँ
मेरे दादा जी के साथ बैठकर
बस एक बार और
शतरंज का खेल खेलना चाहता हूँ
बचपन में, जब भी मैं रोता
दादा के पास भाग कर छुप जाता
पढ़ाते, समझाते, लेकिन कभी ना डाँटते
मैं तो बस खेलता रहता,
वो पूरा दिन, पूरी रात
बस मेरे लिए पेपर बनाते
पूरी दनिया से वो मुझे बचाते
हर छोटी बात पर जलेबी खिलाकर मनाते
कॉलेज गया, तो कमी महसूस होती थी
उन्हें हर वक़्त मेरे सोने की चिंता सताती थी
रोज़ रात रोटियाँ गिनी जाती थीं
मेरे हर कार्यक्रम पर बस वाह-वाही होती थी
अभी तो मैं वापस आया ही था
आपके साथ दुबारा वक़्त बिताने
नयी यादें बनाने
लेकिन पलक झपकते ही
दूर चले गए आप दद्दू
कितनी बातें करनी थीं आपसे
कितने किस्से सुन्ने थे आपके
वक़्त कहाँ गुज़रा, पता ही नही चला
अब तो बस, याद कर लेता हूँ आपको
आपका नीला स्वेटर पहन कर
महसूस कर लेता हूँ आपको
आपकी आधी रात वाली ‘स्पेशल चाय’ बनाकर
और कदमों का पीछा कर लेता हूँ
आपकी चप्पल पहन कर
अब तो बस,
नीले गगन के तले
नीले गगन के तले
खुद से बातें कर लिया करता हूँ
पुरानी बातों कोसंजोकर
अपने दिल के पास रख लिया करता हूँ|
अपने दिल के पास रख लिया करता हूँ|
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